खोरठा कविता (Khortha poem) 2023 नया - जाड़ के दिन
Author -
NKV
November 15, 2022
खोरठा कविता हिन्दी में नया 2023
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Khorthamasala.com |
कविता:- जाड़ के दिन
आय गलो आब जाड़ के दिन
निकालो आपन धारल सुटेर
बैचके रहियो ई ठण्डवा में
न त जीबहे ठिठेर
अगिया के दोसत मैनके
पनिया से कैर लिहो बैर
बैचके रहियो ई ठण्डवा में
न त जीबहे ठिठेर
भोरे भोरे रहो है कुहास
उठे से पहिले लिहे हेर
बैचके रहियो ई ठण्डवा में
न त जीबहे ठिठेर
बोरसी सुलगाव चाहे धंधा जोर
या करौ झुरी काठी जैरके ढेर
बैचके रहियो ई ठण्डवा में
न त जीबहे ठिठेर
बुढ़ बुजुर्ग साब रोदे तर रहिये
चंगेर बुतरु भैर देह पिंधिये दिनभेर
बैचके रहियो ई ठण्डवा में
न त जीबहे ठिठेर
कनकनी हवा फुक्तो सोसे
यहां वहां उमकहिये न ढेर
बैचके रहियो ई ठण्डवा में
न त जीबहे ठिठेर
सांझ के घर घुसे में न करहिये देर
भोरे निकलहिये जब होतै सूरज ऊबेर
बैचके रहियो ई ठण्डवा में
न त जीबहे ठिठेर
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